Sunday, May 17, 2009

सपना अपना

ऐसा भी इक सपना जागे
साथ मेरे इक दुनिया जागे
हवा चले तो जागे जंगल
नाव चले तो नदिया जागे
दाता की दुनिया में 'नासिर'
मैं जागूँ या दाता जागे

Friday, May 15, 2009

ये सर्द रात ये आवारगी ये नींद का बोझ

अपने शहर में होते तो घर चले जाते

बहुत से लोग इसको ग़ालिब का शेर कह्ते हैं लेकिन ऐसा नहीं है

दरअसल ये लखनऊ के एक शायर का है...........................

ब्लॉग पर इसी से इब्तेदा करते हैं