Sunday, May 17, 2009

सपना अपना

ऐसा भी इक सपना जागे
साथ मेरे इक दुनिया जागे
हवा चले तो जागे जंगल
नाव चले तो नदिया जागे
दाता की दुनिया में 'नासिर'
मैं जागूँ या दाता जागे

1 comment:

  1. अखिलेश जी मेरे ब्लॉग पर आपके विचार पढ़ कर बहुत अच्छा लगा. नसीरुद्दीन जी का ब्लॉग ढूँढने की असफल कोशिश ही कर पाई मै. यदि संभव हो तो कृपया ब्लॉग का पता भेजने का कष्ट करें. आप के ब्लॉग की निरंतरता की कामना करती हूँ .

    यदि कमेन्ट बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा दे तो सुविधा होगी .

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