जहां हम सही होते हैं उस जगह
वसंत में
कभी नहीं उगेंगे फूल
जहां हम सही होते हैं
वह जगह अहाते की तरह कड़ी और रौंदी हुई होती है
लेकिन संशय और प्रेम
दुनिया को खोदा करते हैं
छ्छूंदर य हल की तरह
ऐर कभी जहां था एक मकान का खंडहर
उस जगह पर
सुनाया देगी एक फुसफुसाहट।
येहूदा अमीखाई
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